Thursday 18 May 2017

काशी विश्वनाथ

बड़े से बड़ा खतरा टल जाता है
गमो का शोला जल जाता है
महाकाल का आशीर्वाद साथ
हो तो मौत का भी रास्ता बदल
जाता है
Ravi Patel,  the war of Antigraft, Varanasi, Lanka, BHU,  Style, Styles look

Ravi Patel,  the war of Antigraft, Varanasi, Lanka, BHU,  Style

Saturday 13 May 2017

Mother's Day Special

आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ मैं ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दशार्ता है, वह माँ ही होती है पीडा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।

‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  गीता में कहा गया है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढकर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है।

दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है।

लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृध्दाआश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृध्द आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढकर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृध्दाआश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं

Thursday 11 May 2017

The Quality of Varanasi

काशी कबहुँ न छोड़िये, विश्व्नाथ का धाम,
  मरने पर गंगा मिले, जियते लंगड़ा आम
               *बोलो जय श्री राम

Dedicated to Indian Army


बेटे भी घर छोड़ के जाते हैं..
अपनी जान से ज़्यादा..प्यारा लेपटाॅप छोड़ कर...
अलमारी के ऊपर रखा...धूल खाता गिटार छोड़ कर...
जिम के सारे लोहे-बट्टे...और बाकी सारी मशीने...
मेज़ पर बेतरतीब पड़ी...वर्कशीट, किताबें, काॅपियाँ...
सारे यूँ ही छोड़ जाते है...बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
अपनी मन पसन्द ब्रान्डेड...जीन्स और टीशर्ट लटका...
अलमारी में कपड़े जूते...और गंध खाते पुराने मोजे...
हाथ नहीं लगाने देते थे... वो सबकुछ छोड़ जाते हैं...
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
जो तकिये के बिना कहीं...भी सोने से कतराते थे...
आकर कोई देखे तो वो...कहीं भी अब सो जाते हैं...
खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं...
अपने रूम में किसी को...भी नहीं आने देने वाले...
अब एक बिस्तर पर सबके...साथ एडजस्ट हो जाते हैं...
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
घर को मिस करते हैं लेकिन...कहते हैं 'बिल्कुल ठीक हूँ'...
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले...अब कहते हैं 'कुछ नहीं चाहिए'...
पैसे कमाने की होड़ में...वो भी कागज बन जाते हैं...
सिर्फ बेटियां ही नहीं साहब...
. . . . बेटे भी घर छोड़ जाते हैं..!
और वो बेटे फौजी केहलाते हैं...!

हमारी काशी

हमारा शहर(छोटी काशी)
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जहाँ कि शाम बड़ी रंगीन,
जहाँ के लोग बड़े शौकीन।

जहाँ घर-घर में शिव का जाप,
जहाँ टिक सका कभी न पाप।

जहाँ पावन तीरथ वरदान,
जहाँ जन श्रुतियों का सम्मान।

जहाँ पर शिव अविनाशी है,
वही तो छोटी काशी है।।

जहाँ पर सूख गये सब ताल,
हैं बैठे अब उदास घड़ियाल।

जहाँ पर नहीं कोई सरकार ,
पाँच सौ से ऊपर अखबार।

जहाँ पर जहर फेंकती मिल,
जहाँ पर ताण बना दें तिल।

जहाँ पर रानी दासी है,
वही तो छोटी काशी है।

जहाँ सबसे ज्यादा प्रतिशोध,
नही अपराधों पर गतिरोध।

जहाँ पर सभी ठोंकते ताल,
जहाँ पर ठेकेदार - दलाल।

जहाँ पर सर्वाधिक नेता,
कई हैं सच्चे अभिनेता।

जहाँ पर हैजा-खाँसी है,
वही तो छोटी काशी है।

शेष अग्रिम चक्र में आगे कि कविता आपको मिलेगी।।

रवि पटेल

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बनारसी भौकाल

बनारसी  धमकियाँ

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1. बेटा जेतना तोहर उमर हौ, ओकर दुगना हमार कमर हौ!

2. चवन्नी भर क हउवे, आउर डॉलर भर भौकाल!

3. एतना गोली मारब की छर्रा बिनत-बिनत करोडपति हो जइबे!

4. धाम चंडी काशी में, जीवन बीतल बदमाशी में!

5. हमके जान ले, हम मारीला कम और घसिटीला जादा!

6. बेटा… सज के आयल हउवे, बज के जइबे!

7. गुरु… सम्हर जा, नाही त हफ्तन गोली चली आउर महिन्नन धुंआ उडी!

And Latest..”

8.मारब अइठ के रोइबा बइठ के।

Wednesday 3 May 2017

छोटे भाई के जीवन में बड़े भाई का महत्व

बड़े भाई का महत्व........बड़ी बहन की भूमिका

जीवन में बड़ा होना बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ लाता है। किसी भी परिवार में खासकर जब परिवार बड़ा होता है तो बड़े भाई या बड़ी बहन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। बड़ा होना चूंकि अनुभव में परिपक्व बनाता है अतः छोटे भाई बहनों का सही पथ प्रदर्शन करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी हो जाती है।

आज के त्वरित भौतिक परिवेश में सहनशीलता का स्तर गिरता जा रहा है अतः कई बार यह देखने में आता है कि या तो बड़ा भाई अपने छोटे भाई की अनदेखी करता है या फिर छोटा भाई बड़े भाई की बात नही मानता।कभी कभी तो रिश्ते इतने बिगड़ जाते हैं कि हाँथा पाई की नौबत तक आ जाती है। बहनों के बीच यह स्थिति तो नही उत्पन्न होती लेकिन बोलचाल ज़रूर बन्द हो जाती है।

अब महत्वपूर्ण बात ये है कि हम इस सांसारिक जीवन में चाहते क्या हैं। अगर भाई भाई के बीच संपत्ति को लेकर झगड़ा है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि कहीं न कही व्यवस्था की कमी है या किसी एक पक्ष की ग़लती अधिक है जिससे मामलात बिगड़े हुए हैं। अगर ग़लती बड़े भाई की है तो बड़े भाई के लिए यह शोभा नही देता की वह अपने छोटे भाई के साथ नाइंसाफी करे। अगर छोटा भाई थोड़ा दबंग हो और हठधर्मी पर उतारू हो तो यह उसके लिए भी शोभा नही देता की वह अपने बड़े भाई पर रोब झाड़े।

कुल खुलासा ये है कि जो चीज़ नश्वर है हम उसे पाने के लिए आपस के रिश्तों को भी अनदेखा कर देते हैं, जो उचित नही। आपसी रिश्तों  की अहमियत बहुत अधिक होती है सांसारिक भौतिक वस्तुओं के लालच में इनका बलिदान नही करना चाहिए। इस दुनिया में बड़े बड़े राजा महाराजा पैदा हुए और चले गए अब कोई इस संसार में बचा नही है और सबकी दौलत इसी दुनिया में रह गयी।
अतः दौलत के नशे से बचना चाहिए।

जो भी इस संसार में आया है उसे एक दिन जाना होगा अतः जीवन इस अंदाज से जिए कि अंतिम समय में किसी प्रकार कि आत्मग्लानि न हो। यानि अंतिम समय में एक संतुष्टि का भाव रहे कि दुनिया में मैंने किसी के साथ बुरा नही किया। यह स्थिति हमें तभी प्राप्त होगी जब हम इसके लिए सजग रहेंगे। यह सजगता हमारे रिश्तों में कभी दरार नही आने देगी। 

                       RAVI PATEL