Thursday, 11 May 2017

हमारी काशी

हमारा शहर(छोटी काशी)
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जहाँ कि शाम बड़ी रंगीन,
जहाँ के लोग बड़े शौकीन।

जहाँ घर-घर में शिव का जाप,
जहाँ टिक सका कभी न पाप।

जहाँ पावन तीरथ वरदान,
जहाँ जन श्रुतियों का सम्मान।

जहाँ पर शिव अविनाशी है,
वही तो छोटी काशी है।।

जहाँ पर सूख गये सब ताल,
हैं बैठे अब उदास घड़ियाल।

जहाँ पर नहीं कोई सरकार ,
पाँच सौ से ऊपर अखबार।

जहाँ पर जहर फेंकती मिल,
जहाँ पर ताण बना दें तिल।

जहाँ पर रानी दासी है,
वही तो छोटी काशी है।

जहाँ सबसे ज्यादा प्रतिशोध,
नही अपराधों पर गतिरोध।

जहाँ पर सभी ठोंकते ताल,
जहाँ पर ठेकेदार - दलाल।

जहाँ पर सर्वाधिक नेता,
कई हैं सच्चे अभिनेता।

जहाँ पर हैजा-खाँसी है,
वही तो छोटी काशी है।

शेष अग्रिम चक्र में आगे कि कविता आपको मिलेगी।।

रवि पटेल

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